“केवल विश्वास चाहिये। भगवान विश्वास होते ही सब काम बना-बनाया है। सकाम निष्काम की बात नहीं है। बात है भगवान्‌ का भजन करने की, विश्वास पूर्वक भगवान को स्मरण करने की । फिर चाहे किसी भी कामना से आप भगवान को क्यों न भजें, आपको श्री भगवान ही मिलेंगे। श्रीमहाप्रभु चैतन्य देव के समान प्रेम की शिक्षा देने वाला और कौन मिलेगा ? उन्होंने एक जगह स्वयं अपने प्रिय-से- प्रिय शिष्य श्री सनातन गोस्वामी को शिक्षा देते हुए कहा था- 'अन्य कामी यदि करे कृष्णेर भजन' (यदि मनुष्य किसी दूसरी कामना से भी श्रीकृष्ण का भजन करे तो) 'ना माँगि लेओ श्रीकृष्ण तारे देन स्व-चरण' (श्रीकृष्ण न माँगने पर भी उसे अपने चरणों को ही दे डालते हैं). “

“Only faith is needed. Once you have faith in God, everything falls into place effortlessly. The question is not about having selfish or selfless desires; it is about chanting God’s name and remembering Him with faith. Then, regardless of what desire brings you to worship God, you will ultimately attain Him. Who else can give a teaching of love like Shri Mahaprabhu Chaitanya Dev? At one point, he was instructing his most beloved disciple, Shri Sanatan Goswami, and said, ‘Even if a person worships Krishna with some other desire,’ (meaning they approach with worldly desires) ‘without asking, Shri Krishna grants them His own feet,’ (meaning, even without asking for liberation or spiritual fulfillment, Krishna blesses them with His divine grace).”

– Shree Radha Baba

Shri Radha Baba, (Shri Chakradhar Mishra) (1913–1992), was a revered saint of Gorakhpur who led a life of profound austerity and devotion. Despite his brilliance as a scholar fluent in multiple languages, Radha Baba chose to live away from public attention, believing that a true Sanyasi should remain humble and hidden. His spiritual journey began with a deep devotion to Lord Shiva and Vedanta, but after meeting Shri Hanuman Prasad Poddar, affectionately called Bhaiji, his path transformed. Under Bhaiji’s guidance, Radha Baba embraced the Bhakti Marg, becoming a dedicated follower of Lord Krishna in the Radha Bhava tradition. A staunch practitioner of Naam Sadhana and Bhava Samadhi, Radha Baba lived a life of severe simplicity, never touching money or indulging in luxuries. His spiritual practices were intense, often leading him into deep states of Samadhi. He never sought fame and wrote anonymously, inscribing his works as “Ek Sadhu.” Although he never made disciples, his teachings on the power of prayer and chanting the Lord’s name left an indelible mark on those who followed him. His life remains a rare example of humility, devotion, and spiritual excellence.

श्री राधा बाबा (पूर्व नाम – श्री चक्रधर मिश्र) (1913–1992) गोरखपुर के एक पूजनीय संत थे, जिन्होंने तपस्या और भक्ति से पूरित जीवन जिया। कई भाषाओं में निपुण और विद्वान होते हुए भी, राधा बाबा ने स्वयं को सांसारिक प्रसिद्धि से दूर रखा, क्योंकि उनका मानना था कि एक सच्चे सन्यासी को विनम्र और गुप्त रहना चाहिए। उनकी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत भगवान शिव और वेदांत के प्रति गहरी भक्ति से हुई थी, लेकिन श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार (जिन्हें प्रेम से भाईजी कहा जाता था) से मिलने के बाद उनका मार्ग चमत्कारिक रूप से बदल गया। भाईजी के मार्गदर्शन में, राधा बाबा ने भक्ति मार्ग को अपनाया और राधा भाव परंपरा में भगवान कृष्ण के समर्पित भक्त बन गए।नाम साधना और भाव समाधि के दृढ़ साधक राधा बाबा ने अत्यंत सादगीपूर्ण जीवन जिया, कभी भी पैसे को हाथ नहीं लगाया और न ही रत्ती भर भी  विलासिता के आकर्षण में खुद जाने दिया। उनकी साधनाएँ इतनी गहन थीं वे अक्सर गहरी समाधि के अवस्थाओं में चले जाते थे। उन्होंने कभी भी प्रसिद्धि की इच्छा नहीं रखी और अपने लेखन को “एक साधु” के नाम से गुमनाम रूप से प्रकाशित किया। यद्यपि उन्होंने कोई शिष्य नहीं बनाए, लेकिन प्रार्थना और भगवान के नाम जप की शक्ति पर उनकी शिक्षाओं ने उनके अनुयायियों पर अमिट छाप छोड़ी। उनका जीवन विनम्रता, भक्ति और आध्यात्मिक उत्कृष्टता का एक दुर्लभ उदाहरण है।

 

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