Chiman Lal Goswami was a revered scholar and spiritual figure whose life was marked by both intellectual brilliance and deep humility. Born into a traditional family, he displayed exceptional academic talent early on, earning two gold medals in English and Sanskrit from Banaras Hindu University. His achievements led him to serve as Private Secretary to Pandit Madan Mohan Malviya, the founder of the university and a respected freedom fighter and educationist. Despite receiving offers for prestigious administrative roles, including a significant position from the Maharaja of Bikaner, Goswami chose to renounce worldly opportunities. He felt a strong spiritual calling, which led him to join Gitapress, Gorakhpur — which was in its initial phase at that time but later became renowned publisher dedicated to preserving and spreading Hindu religious and spiritual literature. He accepted a modest salary to serve a higher purpose.

At Gitapress, Chiman Lal Goswami became a pivotal, though largely unseen, force in the mission of the organization. Working alongside Bhaiji, Shri Hanuman Prasad Ji Poddar, he contributed extensively to Gitapress’s goal of making religious literature available to the masses. He has a great knowledge of Sanskrit as well as English so whenever Bhaiji needed assistance in these languages Chiman lal ji was always there to give the work greateness with his expertise. He served as the editor of Kalyan Kalptaru, the English counterpart of Kalyan, which reached a global audience. Goswami also undertook the immense task of translating sacred Hindu texts, including the Bhagavad Gita, Ramcharitmanas, Valmiki Ramayana, and Madhbhagwat, bringing these revered works to non-Hindi-speaking readers worldwide. His translations were invaluable in introducing Hindu philosophy and spirituality to a broader audience.

Chiman Lal Goswami’s life was deeply influenced by the spiritual personalities he admired, especially Bhaiji and Radha Baba. He viewed them as great spiritual guides and dedicated his work in their honor, often crediting his own accomplishments to their influence. Goswami’s humility was profound; despite his critical role at Gitapress and his achievements, he remained modest, preferring to work behind the scenes. His dedication and selflessness left an enduring legacy in the world of spiritual literature, where he is remembered not only as a scholar but as a devoted servant of the divine mission of Gitapress.

चिमन लाल गोस्वामी एक विद्वान और आध्यात्मिक विभूति थे, जिनका जीवन बौद्धिकता और विनम्रता का प्रतीक था। पारंपरिक मूल्यों वाले परिवार में जन्मे गोस्वामी जी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से अंग्रेजी और संस्कृत में दो स्वर्ण पदक प्राप्त किए, ये उनकी विद्वत्ता का प्रमाण था। उनकी शिक्षा और प्रतिभा ने उन्हें पंडित मदन मोहन मालवीय के निजी सचिव के रूप में कार्य करने का अवसर प्रदान किया। मालवीय जी के साथ काम करते हुए उनके सामने राष्ट्र निर्माण में योगदान देने अवसर था, परंतु गोस्वामी जी ने सांसारिकता से दूरी बनाना चुना। बीकानेर के महाराजा द्वारा भी उन्हें एक उच्च प्रशासनिक पद की पेशकश की गई थी, लेकिन आध्यात्मिक सेवा की ओर झुकाव ने उन्हें गीता प्रेस, गोरखपुर से जुड़ने के लिए प्रेरित किया, जो उस समय अपने प्रारंभिक चरण में था, लेकिन बाद में हिंदू धार्मिक और आध्यात्मिक साहित्य के संरक्षण और प्रसार के लिए एक प्रसिद्ध प्रकाशक बन गया। उन्होंने एक उच्च उद्देश्य की सेवा करने के लिए एक मामूली वेतन स्वीकार किया।

गीता प्रेस में, चिमन लाल गोस्वामी ने पर्दे के पीछे रहते हुए बड़ा योगदान दिया। भाईजी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार के सहयोगी के रूप में, उन्होंने धार्मिक साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने के मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कल्याण कल्पतरु का संपादन किया, जो कल्याण का अंग्रेजी संस्करण था और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता का प्रसार करता था। उन्हें संस्कृत के साथ-साथ अंग्रेजी का भी गहरा ज्ञान था, इसलिए जब भी भाईजी को इन भाषाओं में सहायता की आवश्यकता होती, चिमन लाल जी हमेशा अपनी विशेषज्ञता से कार्य को उत्कृष्टता प्रदान करने के लिए उपस्थित रहते थे।गोस्वामी जी ने भागवत गीता, रामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण, और मदभगवत जैसे पवित्र ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद किया, जिससे वैश्विक स्तर पर गैर-हिंदी पाठकों के बीच हिंदू धर्म की गहरी समझ प्रसारित हो सकी।

उनके जीवन में भाईजी और राधा बाबा जैसे महान आध्यात्मिक व्यक्तित्वों का गहरा प्रभाव था, जिनके प्रति उनकी आस्था अटूट थी। वे इन आध्यात्मिक विभूतियों को अपना प्रेरणास्रोत मानते थे और अपने कार्यों को उन्हीं के नाम समर्पित करते थे। अपनी भूमिका और उपलब्धियों के बावजूद, गोस्वामी जी ने सदा ही विनम्रता का परिचय दिया और कभी भी सामने नहीं आए। उनके जीवन की यह सादगी और निःस्वार्थ सेवा गीता प्रेस के लिए अमूल्य सिद्ध हुई। उन्हें आज भी धार्मिक साहित्य के क्षेत्र में एक विद्वान् व्यक्तित्व और सच्चे आध्यात्मिक सेवक के रूप में याद किया जाता ह

1..परिशिष्ट- गोस्वामी

2.Smarpanmurthi Shree Chiman lal Ji Goswami

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